23 दिसंबर 2012

लम्बी कविता ‘गुलाब की पत्तियां और कैंची’ से एक अंश



नीली रात की अलगनी पर टांगकर सितारों की झालरें 
अपनी डायरी में लिख रहा है चांद 
उन लड़कियों की मुख़्तसर दास्तानें 
जिन्हें उनके क़ातिलों ने 
घने जंगलों में ज़हर देकर सुला दिया था 
अपने गुनाहों का लिबास छोड़कर वे 
किसी शहर के शॉपिंग-मॉल में सजे-धजे घूम रहे होंगे 
धूप के चश्मे लगाए 
धूप के चश्मों में बड़ी उदास दीखती है महानगर की रात

महानगर की रात उस जंगल की रात से कम भयानक नहीं थी
जिसके बारे में एक मोची का बयान था कि
वह चमड़े की शराफ़त के पीछे
आदमी पर पेड़ से वार करता है
यक़ीनन, सुदामा पाण्डेय धूमिल यक़ीनन
मग़र तुम यह कहना भूल गए
कि उसकी सबसे घातक चोट औरत पर पड़ती है

औरत जो इस वक्त
भाषा में आदमी होने की तमीज का सबसे बड़ा प्रतीक है

/ -दिलीप शाक्य

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