तो क्या हुआ कि आज अपनी ही सलवटों में लिपटे हुए
परचमों को
बहुत क़रीब से देख रहा हूं मैं
किसी पार्टी-वर्कर की तरह
हवा के रुख़ पर शर्मिंदा होता हुआ
तुम्हें भी तो देख रहा हूं मैं तुम्हारी ही तरह
मेरी हमनफ़स
हवा के रुख़ को कई-कई दिशाओं में मोड़ते हुए बे-खौफ़
तोड़ते हुए भीतर की मजबूत श्रंखलाएं
कड़ी-दर-कड़ी
तुम अभूतपूर्व लग रही हो मेरे भीतर और बाहर खड़ी
चैलेंज-सी...
(दिलीप शाक्य)
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