वरक़ ज़िंदगी का उलटते रहे हम
कहॉं तेरी जानिब पलटते रहे हम
कभी दर खुलेगा इसी आरज़ू में
जबीं आस्तां पर रगड़ते रहे हम
वो आए हमें खोजने जब शहर में
घने जंगलों में भटकते रहे हम
इधर बाग़-ए-दिल में कई फूल आए
मग़र तेरी ख़ुश्बू में जलते रहे हम
लबों पर लबों का तबस्सुम न आया
बहुत खूं की रंगत बदलते रहे हम
कहॉं जाके यारो खुदी को मिटाते
यहीं अपने घर में टहलते रहे हम
ये आईना हमसे बहुत आशना था
इसी में बिगड़ते-संवरते रहे हम
sir bahut hi sundar gazal hai...aasha hai ki aage or bhi gazale padhne ko milengi......
जवाब देंहटाएंwah
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