13 अक्तूबर 2012

लंबी कविता ‘गुलाब की पत्तियॉं और कैंची’ से एक अंश


तितलियों, तितलियों तुम कहॉं हो?
हम कब से पुकार रहे हैं
हमारी मसें भीग रही हैं
हमारा दिल धड़क रहा है
बाग़वान की कैंची के शिकार होने से पहले
हम तुम्हारे परों से लिपट जाना चाहते हैं
हम ओस की बूंदों में नहाकर आए हैं
अछूती सॉंसों में खुश्बुओं की सरगोशियॉं लाए हैं

                            -दिलीप शाक्य


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