9 अगस्त 2010

दहक

मेरी और तुम्हारी आंख का पानी
बन सकता है सीने की आग
ज़रा सोचो

आओ बैठो
इस बुझी हुयी राख में कुरेदें
फिर किसी ख़्वाब की दहक
तो क्या हुआ कि गूंगे हैं
चीखें फिर भी लगाकर ज़ोर

क्या पता दरक ही जाए
यह आलीशान कांच की दीवार

(दिलीप शाक्य)

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