जैसे ही धूप में रखी
मैंने अपनी सीली हुयी माचिस
रास्ते में आ गये बादल
बादलों में डूब गया सूरज
अंधकार
अंधकार से सजधर कर निकली
लाइटरों की एक जगमगाती दुकान
एक लाइटर इतना आकर्षक था
कि मैंने उसे ख़रीद लिया
फिर बरस बीते
घर की चाबियों की तरह
लाइटर भी पुराना पड़ गया
लेकिन सिगरेट के धुंए में अब भी ताज़ा है
सीली हुयी माचिस और डूबते सूरज की याद
हालांकि यह धुआं भी अब पुराना पड़ गया है
इतना पुराना
कि अक्सर सोचता रहता हूँ
इससे छूटने की आसान तरकीबें
(दिलीप शाक्य)
किससे छूटने की तरकीबें ढूँढ रहे साहब? लाइटर से या धुएँ से?
जवाब देंहटाएं*स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आप एवं आपके परिवार का हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ. सादर * *संजय भास्कर
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों बाद इतनी बढ़िया कविता पड़ने को मिली.... गजब का लिखा है
जवाब देंहटाएंek ajeeb si khamoshi aur akelapan har zagah
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा रचना है सर
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