21 नवंबर 2014

मैं और वह


------------------कविता-श्रृंखला
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नेताजी के भाषण में पार्टी की टोपी थी, पार्टी का माइक था और मुंह भी शायद पार्टी का ही था
मैंने उससे पूछा: नेताजी का क्या है ?
कुछ नहीं, सब जनता का है : बालों से हेयर पिन निकालते हुए उसने कहा
बीच में पार्टी कहां से आयी फिर : मैंने फिर कहा
‘पार्टीशन’ शब्द पर ज़ोर देत हुए उसने पूछा : ‘हिन्द स्वराज’ नहीं पढ़ा क्या ?
हां पढ़ा तो है : मैंने अपना चश्मा ठीक करते हुए कहा
तो फिर उठो और जनता से कहो कि,
हमें किसी वकील की ज़रूरत नहीं : लोकतंत्र की हर अदालत को ख़ारिज़ करते हुए उसने कहा
क्या उसने मुझसे कुछ ग़लत कहा : मैंने अपने आप से पूछा
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[दिलीप शाक्य ]

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