------------------कविता-श्रृंखला
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शहर के जुलूस में बहुत दूर तक चलने के बाद हमने अपने क़दम
एक खंडहर की ओर मोड़ दिए
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शहर के जुलूस में बहुत दूर तक चलने के बाद हमने अपने क़दम
एक खंडहर की ओर मोड़ दिए
शहर और खंडहर के बीच की खाली जगह को
एक नदी की तरह देखते हुए मैंने उससे पूछा : जाएं तो जाएं कहां ?
टैक्सी ड्राइवर, देवानंद, 1954...नाइस सोंग इट इज : जवाब में उसने कहा
एक नदी की तरह देखते हुए मैंने उससे पूछा : जाएं तो जाएं कहां ?
टैक्सी ड्राइवर, देवानंद, 1954...नाइस सोंग इट इज : जवाब में उसने कहा
मैंने उसकी आंखों में तैरती हुई उम्मीद को
एक नाव की तरह देखा
और खंडहर की पुरानी तहज़ीब में लौटते हुए पूछा : लॉन्ग ड्राइव ?
मेरी हथेली को अपनी हथेली से गर्माते हुए उसने कहा : व्हाइ नॉट ?
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[दिलीप शाक्य ]
एक नाव की तरह देखा
और खंडहर की पुरानी तहज़ीब में लौटते हुए पूछा : लॉन्ग ड्राइव ?
मेरी हथेली को अपनी हथेली से गर्माते हुए उसने कहा : व्हाइ नॉट ?
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[दिलीप शाक्य ]
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