21 मार्च 2014

ग़ज़ल

लबों से देखे है आंखों से मुस्कुराए है
यूं मेरे दिल में कोई सुर्ख़ियां लुटाए है

सियाह रंग को यारो सलाम हो मेरा
वो एक तिल है जो रुख़सार को सजाए है

जुनूं में देखिओ दीवाना हो न जाउं मैं
ये इश्क़ यूं तो नहीं कुछ मग़र सताए है

जलेंगे हम भी वहीं तुम जहां बुझाओगे
कि राख़ में भी कोई आग सी लगाए है

हिले है बाग़ में पत्ता न फूल महके है
ये किसके नाम की गुल्चीं हवा बनाए है
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दिलीप शाक्य]

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