26 मार्च 2013

ग़ज़ल / दिलीप शाक्य

फिर आज रंग है हर सू चमन में होली है 
पलाश फूल रहे हैं बदन में, होली है

ये कूल घाट ये गलियां ये चौक रंग में हैं
नगर में हाट में घर में सहन में होली है

है नील सुर्ख़ गुलाबी जहां सितारों का
गुलाल अर्श उड़ाए गगन में होली है

बिरज में फेंक रही है अबीर सखियों पर
बदल रही है ये राधा किसन में, होली है

चढ़ा है भांग का रंग फाग की धुनें है जवां
अवध के तन में बनारस के मन में होली है

न खिड़कियों से तको चुप गली में आओ भी
बता रहे हैं इशारे कहन में होली है

कोई हमारे भी लीडर से जा कहो यारो
नहीं है फ़िरकापरस्ती अमन में होली है

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