____________________________
या मेरे ख़्वाब की दुनिया मुझे नवाज़ करो
या ख़ुद को अपनी निगाहों में शर्मसार करो
ये किसकी आंख का मंज़र मुझे दिखाते हो
मैं बाज़ आया मनाज़िर मेरे बहाल करो
तुम्हारे अहद की तस्वीर बन नहीं सकता
ख़ुदा के वास्ते वापस मुझे किताब करो
क्यों इश्तहार की सूरत लुभा रहे हो मुझे
छिपा है दिल की तहों में जो राज़ फ़ाश करो
मैं घर में आया हूं जबसे उदास बैठे हो
न अपने आपको मुझसे यूं बेनियाज़ करो
ये नीम नीम उजाला मुझे क़ुबूल नहीं
चराग़ जलता है कम कम इसे मशाल करो
हमारे तर्ज़े-बयां पर जो हंस रहे हो बहुत
तो आओ आग को पानी गुलों को ख़ार करो
____________________________
मार्मिक रचना.
जवाब देंहटाएंबधाई, भाई.
shukriya dr. sahab...aasha hai sanand honge
जवाब देंहटाएं