6 जून 2012

स्कैच-21



चाकुओं ने विनम्र होकर त्याग दी
अपनी बरसों पुरानी धार
और खेतों में हल की मूठ बनकर खड़े थे

उन्ही कर्मठ हाथों के इंतजार में
जो किसी पुराने महल के मलबे में
फ़ोसिल्स की तरह दबे थे ...

(लम्बी कविता 'आग के उदास स्कैच' से एक अंश )
                                     
                                      -दिलीप शाक्य


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