धुंध में तड़ित की तरह लहराई
सेज पर बेहिस पड़ी
एक उदास आवाज़
सुदूर जंगल की कटीली झाड़ियों को चीरता
दुगने वेग से लौटा
एक लहू लुहान घोड़ा
अपनी कौम से अलग होकर
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धुंध में बाहें फैलाकर
एक स्त्री ने एक पुरुष को पुकारा
एक पुरुष के हाथ में पिस्टल थी
और हवा में फैल चुकी थी खून की कच्ची बू
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हरे पेड़ों के झुरमुट से दिखी
एक औरत की नीली पीठ
चेहरे की जगह
एक पतंग थी ओस में भीगी हुई अम्लान
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(लम्बी कविता 'आग के उदास स्केच' से एक अंश ...)
-दिलीप शाक्य
Nice kavita.
जवाब देंहटाएंPlease see
दशक का ब्लॉगर, एक और गड़बड़झाला
http://blogkikhabren.blogspot.in/2012/05/blog-post_14.html
accha hai pr mujhe kuch samjh me nhi aaya itni dimga wali kavita
जवाब देंहटाएंlikhte rehiye
http://blondmedia.blogspot.in/
kya bat....khoob likh rahe ho...lage raho
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