दरख्तों के नंगे चिकने तनों पर
हवाओं के बोसे ग़ज़ल लिख रहे हैं
दम साधकर आसमां सुन रहा है
मुहब्बत की उन्मुक्त सांसों की धुन
सितारों जड़ी रात
हँस- हँस के दोहरी हुई जा रही है ...
(-दिलीप शाक्य )
हवाओं के बोसे ग़ज़ल लिख रहे हैं
दम साधकर आसमां सुन रहा है
मुहब्बत की उन्मुक्त सांसों की धुन
सितारों जड़ी रात
हँस- हँस के दोहरी हुई जा रही है ...
(-दिलीप शाक्य )
बहुत खूब ....
जवाब देंहटाएंShukriya...
हटाएंसर यह काविता किशोर जीवन के भावुक उन्माद से ओतप्रोत है कुछ क्रन्तिकारी कविता लिखकर हमें उसका रसास्वादन करावें ताकि आपके प्रेमातुर लेखनी से निकली कविता से भी हम आनंदित हो सकें |
जवाब देंहटाएंye college ke dino ki kavita hai..so bhavochhwas swabhavtah gahra ho gaya hai...scroll this blog downward...hope u will get what u r looking for...
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