(वर्चुअल रिअलिटी का एक रिफ्लेक्शन )
आवाज़ और उजाले की पिघली हुई छायाओं के बीच
नीली तितलियों की तरह
मेरी नींद में, कल रात
बहुत देर तक उड़ते रहे तुम्हारे फेस-बुक स्टेटस
और एक वीडियो-लिंक ने तो चित ही कर दिया मुझे
पीड़ा और रोष के जीवित दस्तावेज़ बनकर
बहुत दूर तक दौड़ते रहे तुम्हारे कमेंट्स
मेरी हॉंफती रगों में...
अपने लिबास की धूल झाड़कर उठा मैं किसी तरह
पानी पीकर बैठा ही था
कि एक चैट-रूम से बुलावा आ गया
पहाड़ों, नदियों, समंदरों को पार कर कुछ ही क्षणों में
पहुंचा एक अजनबी देश में
वहॉं एक-दूसरे से ऐसे मिल रहे थे सब
सदियों के बिछड़े हों जैसे
मैं भी दाखिल हो ही रहा था एक नशीली दास्तान में
कि इन-बॉक्स में एक ई-मेल देखकर
ठिठक गए मेरे क़दम...
नींद टूट चुकी थी
खुलकर बड़ी हो चुकी थीं ऑंखें
हाथ मलने के सिवा काई चारा नहीं था
रात के जंगल में एक उदास भेड़ की तरह
सुबह से पहले ही लौट गया था चॉंद...
एक नये राष्ट्र् का जन्म हो चुका था
जो विश्व के हर राष्ट्र् के भीतर
आकार ले रहा था
हर मानचित्र के बाहर फैल रही थीं जिसकी सीमायें
कितना लाजवाब तथ्य था, कि मैं
इस नए राष्ट्र का नागरिक था और मुझे ही ख़बर नहीं थी
...ई-मेल में मेरा नागरिक पहचान-पत्र अटैच था
और अब मुझे
अपनी नागरिकता का शुल्क अदा करना था...
मेरे जाने-अनजाने दोस्तो... अपना मेल-बॉक्स देखते रहो
कहीं तुम भी तो मेरी तरह किसी........???
(-दिलीप शाक्य)
आवाज़ और उजाले की पिघली हुई छायाओं के बीच
नीली तितलियों की तरह
मेरी नींद में, कल रात
बहुत देर तक उड़ते रहे तुम्हारे फेस-बुक स्टेटस
और एक वीडियो-लिंक ने तो चित ही कर दिया मुझे
पीड़ा और रोष के जीवित दस्तावेज़ बनकर
बहुत दूर तक दौड़ते रहे तुम्हारे कमेंट्स
मेरी हॉंफती रगों में...
अपने लिबास की धूल झाड़कर उठा मैं किसी तरह
पानी पीकर बैठा ही था
कि एक चैट-रूम से बुलावा आ गया
पहाड़ों, नदियों, समंदरों को पार कर कुछ ही क्षणों में
पहुंचा एक अजनबी देश में
वहॉं एक-दूसरे से ऐसे मिल रहे थे सब
सदियों के बिछड़े हों जैसे
मैं भी दाखिल हो ही रहा था एक नशीली दास्तान में
कि इन-बॉक्स में एक ई-मेल देखकर
ठिठक गए मेरे क़दम...
नींद टूट चुकी थी
खुलकर बड़ी हो चुकी थीं ऑंखें
हाथ मलने के सिवा काई चारा नहीं था
रात के जंगल में एक उदास भेड़ की तरह
सुबह से पहले ही लौट गया था चॉंद...
एक नये राष्ट्र् का जन्म हो चुका था
जो विश्व के हर राष्ट्र् के भीतर
आकार ले रहा था
हर मानचित्र के बाहर फैल रही थीं जिसकी सीमायें
कितना लाजवाब तथ्य था, कि मैं
इस नए राष्ट्र का नागरिक था और मुझे ही ख़बर नहीं थी
...ई-मेल में मेरा नागरिक पहचान-पत्र अटैच था
और अब मुझे
अपनी नागरिकता का शुल्क अदा करना था...
मेरे जाने-अनजाने दोस्तो... अपना मेल-बॉक्स देखते रहो
कहीं तुम भी तो मेरी तरह किसी........???
(-दिलीप शाक्य)
देखा मेल बॉक्स अपना पर हाथ न लगा कोई भी सपना
जवाब देंहटाएंसो जाती हु शायद दिख जाये कोई प्यारा सपना
अच्छा लगा पढ़ कर...
aapki pratikriya achhi lagi...shukriya
हटाएंएक अलग ही अंदाज में यह प्रस्तुति का यह अंदाज़ भी अच्छा लगा....
जवाब देंहटाएंसर बहुत ही अच्छा प्रयास है प्राचीनता एवं उतर आधुनिकता का अनोखा
जवाब देंहटाएंमिश्रण है यह मिश्रण हिरदय मेंघुलनशील है इस विलियन के लिए आपको अंतरतम से बधाई I
shukriya kumar sahab..aate rahiye
हटाएंnice ... !!
जवाब देंहटाएंthanx to like...
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