उसके हाथों में कोई फूल सा चेहरा देखा
फिर उसे हमने किसी आँख में ठहरा देखा
दिन फिरा धुंध की चादर को लपेटे दिन भर
रात की बाँहों में सिमटा हुआ कोहरा देखा
रात भर चाँद जला साज़ बजा रक्स हुआ
ता सहर बज़्म ने आकाश सुनहरा देखा
दिन उगा, फूल खिले, शहर में सब्ज़ा हर सू
उसने हर रंग में एक रंग सा गहरा देखा
हर तरफ आज वही देख रहा है दरिया
उसने कल इश्क़ में तपता हुआ सहरा देखा
-(दिलीप शाक्य)
फिर उसे हमने किसी आँख में ठहरा देखा
दिन फिरा धुंध की चादर को लपेटे दिन भर
रात की बाँहों में सिमटा हुआ कोहरा देखा
रात भर चाँद जला साज़ बजा रक्स हुआ
ता सहर बज़्म ने आकाश सुनहरा देखा
दिन उगा, फूल खिले, शहर में सब्ज़ा हर सू
उसने हर रंग में एक रंग सा गहरा देखा
हर तरफ आज वही देख रहा है दरिया
उसने कल इश्क़ में तपता हुआ सहरा देखा
-(दिलीप शाक्य)
बहुत खुबसूरत ग़ज़ल .....
जवाब देंहटाएंbahut shukriya sunil ji....
हटाएंबहुत खूब.
जवाब देंहटाएंमिले बहुत अरसा हुआ.
shukriya rishabh ji...sachmuch, aapke sath ncert ke wo din bade lajawab guzre..umeed hai ki fir milenge.....
हटाएंउसके हाथों में कोई फूल सा चेहरा देखा
जवाब देंहटाएंफिर उसे हमने किसी आँख में ठहरा देखा
Bahut Umda.... Behtreen Panktiyan
tareef ke liye shukriya monika ji...
हटाएंबहतरीन ....
जवाब देंहटाएंshukriya pallavi ji...
हटाएंye ghazal achchhi hai. iska dusra she'r to lajawab hai.. Congrts!!!!!!!!!
जवाब देंहटाएंshukriya bandhu shukriya...
हटाएंबहुत बढिया सर... बधाई ..
जवाब देंहटाएंshukriya samarth...
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