16 अगस्त 2010

संजय की हज़ार हज़ार ऑंखें

यु़द्ध हो रहा है
धृतराष्ट्र के पास
संजय की हज़ार हज़ार ऑंखें हैं फिर भी

अनभिज्ञ है धृतराष्ट्र
यु़द्ध की ज़मीनी सूचनाओं से

क्या संजय की हज़ार हज़ार ऑंखें
गुमराह कर रहीं हैं धृतराष्ट्र को

या वे नहीं देख पा रहीं

अर्जुन और दुर्योधन  की तलवारों से
यु़द्ध-भूमि पर कटकर गिरी
हज़ार हज़ार बाहों को
हज़ार हज़ार घुटनों को
हज़ार हज़ार धड़ों को
हज़ार हज़ार सिरों को

ख़ून के दलदल में धॅंस रही है धरती
हवा पानी आग और आकाश हर कहीं
हो रहा है यु़द्ध

और अनभिज्ञ है धृतराष्ट्र
यु़द्ध की ज़मीनी सूचनाओं से

संजय की हज़ार हज़ार ऑंखों पर बंधी हैं
अंधेरे की हज़ार हज़ार पट्टियॉं

(दिलीप शाक्य)

6 टिप्‍पणियां:

  1. यु़द्ध हो रहा है
    धृतराष्ट्र के पास
    संजय की हज़ार हज़ार ऑंखें हैं फिर भी

    अनभिज्ञ है धृतराष्ट्र
    यु़द्ध की ज़मीनी सूचनाओं से

    जी हाँ यहाँ सभी की आँखों पे पट्टी बंधी है .....
    बहुत सशक्त रचना .....!!
    .
    कैसे हैं .....बहुत दिनों बाद आना हुआ ......?

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  2. aapki kavitao ki khas baat hai ki log usko apne apne tarike se interpret karte hai aur seen ka zabardast visualisatin bhi hota hai per aksar seen darkness se bhare hote hai aur bahut gahre bhi

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  3. संजय की हज़ार हज़ार आंखों पर बंधी हैं,
    अंधेरों की हज़ार हज़ार पट्टियां। ख़ूबसूरत पंक्ति ख़ूबसूरत कविता । बधाई।

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  4. संजय की धृतराष्ट्रता को खूब उभारा है आपने.
    बधाई!

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  5. आज के शासकों भी यही स्थिति है.... धृतराष्ट्र आज भी समझने को तैयार नहीं है... संजय और शकुनी तो हमेशा से रहे हैं और आगे भी रहेंगे.........................................

    आपका दोनो ब्लाग देख कर दिल खुश हो गया ।
    आशीष मिश्र
    हिंदुस्तान

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