उसकी देह
उसकी भाषा को रौंदकर आगे निकल आयी
टूटकर बिखर गया
उसके लिबास का कसा हुआ वाक्य
छिटक कर दूर जा गिरे नींद में हँसते हुए शब्द
इससे पहले कि संभलता मेरी लिपि का व्याकरण
तालू से चिपकते गए वर्ण
गले में रुन्धती गयीं ध्वनियाँ
होश की तरह छूट गयी सांसों से वर्तनी
आँखों में पिघलता रहा कोई मधुवन
रोम रोम में समा गयी गंध
(दिलीप शाक्य)
Adbhut.....!!
जवाब देंहटाएंintjaar hai .....!!
सुन्दर कविता पढवाने के लिए आपका धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन!
जवाब देंहटाएं