------------------कविता-श्रृंखला
[7]
शहर में जब सियासत के समीकरण बिगड़ रहे थे
और एक समुदाय का उम्मीदवार दूसरे समुदाय के उम्मीदवार की जड़े खोद रहा था
मैंने उससे कहा : चलो एक पेड़ उगाएं
उसे संशय था : फूल खिलेंगे?
मैंने कहा : मौसम तो पतझड़ का है...फिर भी लैट्स ट्राई
उसने पूछा : अपनी मुस्कुराहट बो दूं ?
मैंने अपनी कुदाल उठाई और पिछले मौसम में पूरी तरह जल चुके चिनार के वृक्षों को याद करते हुए कहा : हां, मग़र होंटो की लिपिस्टिक तो छुटा दो..
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[दिलीप शाक्य ]
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शहर में जब सियासत के समीकरण बिगड़ रहे थे
और एक समुदाय का उम्मीदवार दूसरे समुदाय के उम्मीदवार की जड़े खोद रहा था
मैंने उससे कहा : चलो एक पेड़ उगाएं
उसे संशय था : फूल खिलेंगे?
मैंने कहा : मौसम तो पतझड़ का है...फिर भी लैट्स ट्राई
उसने पूछा : अपनी मुस्कुराहट बो दूं ?
मैंने अपनी कुदाल उठाई और पिछले मौसम में पूरी तरह जल चुके चिनार के वृक्षों को याद करते हुए कहा : हां, मग़र होंटो की लिपिस्टिक तो छुटा दो..
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[दिलीप शाक्य ]
वाह!
जवाब देंहटाएंनमस्ते सर! अच्छी कविता है। आप बहुत अच्छा लिखते हैं।
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